उदयभानु की अचानक मौत के बाद निर्मला के जीवन में एकदम से बदलाव आ जाते है। जब तक पिता थे तब तक शादी पूरे ज़ोर-ढोर से करवाई जा रही थी, सारे महमानो के लिए व्यवस्था की गई थी। परंतु पिता की हत्या के बाद उसकी माँ के निर्णय के कारण हम देखते है की उसकी शादी एक दम से टूट जाती है, यह उसकी माँ की सोच को एक अच्छी नीयत की तरह दिखाया है, की वह समझती है की भनसाराम का परिवार बहुत ही कंजूस है और उसकी बेटी वह कभी ख़ुश नहीं रह पाएगी। पाठकों को उसके निर्णय से कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि वह अपनी बेटी के सुख के लिए यह निर्णय लेती है। परंतु इसके कुछ ही समय बाद जब हम देखते है कल्याणी आगे निर्णय अपने बेटों के बारे में सोचते हुए लेती है की अगर उसे दहेज देनी पड़ी तो उसके पास अपने बेटों को देने के लिए कुछ ना बचे। इसी कारण से उसका उदयभानु से झगड़ा हुआ था और अभी भी इसी मूल भाव के कारण वह निर्मला के लिए सबसे अच्छा परिवार चुनने की जगह वह एक ऐसा परिवार चुनती है जिसमें उसे कोई दहेज ना देनी पड़े। तो वह पैसों को अपनी बेटी के सुख से ज़्यादा मूल्य देती है क्योंकि वह सोचती है की पैसे तो उसे अपने बेटों के लिए बचाकर रखने है। और यहाँ शुरू होता है वही नाटकीय मोड़ जिसका पूर्वाभास प्रेमचंद ने निर्मला के नौका वाले स्वप्न में किया था, किस प्रकार उसके पिता की मौत के बाद उसका जीवन एकदम से कितना बदल जाता है।