महायज्ञ का पुरस्कार: प्रतिबिंब

हम लोगोने  ने कक्षा १० का  पहला उपन्यास महायज्ञ का पुरस्कार था। इस उपन्यास का मुख्य विषय उदारता एवं विनम्रता का है। यह श्री यशपाल द्वारा लिखा एक काल्पनिक उपन्यास है। इसका सारांश है की एक बार एक आमिर सेठ था, जो बहूत मेहरबान था, उसे   भी एक दिन ग़रीबी का मूह देखना पडरा। और सेठनी के कहने पर याज्ञ बएचने के लिए धंना सेठ के पास चले गये।रास्ते में सेठ ने अपनी चरो रोटियाँ एक कमज़ोर कुत्ते को उदारू  सेठ ने  खिला दी। और कमज़ोर कुत्ते की हालत फिर सही हो गियी। बाक़ी रास्ता सेठ जी ने पानी से चला लिया। पहुचने पर, धन्नी सेठानी जिनके पास देविक शक्ति थी, ने सेठ का यज्ञ इंकार कर दिया। जबकि, सेठ जी से उनका ‘महायज्ञ’ माँगा। यह सुनकर, सेठ बहूत आश्चर्य चकित हो गाए। वह मज़ाक़ समझकर वापस आगए। सेठानी खली हात सेठ को देख कर दुखी होगी। रात में, सेठानी बाहर गई तो देखा की एक पत्त्थ्र-सा पढ़ा है। देखकर उन्होंने सेठ जी को बुलाया। सेठ ने पत्थर उधाया तो देखा की एक गूफ़ा है। गूफ़ा के अंदर वह गये तो उन्होंने देखा की गूफ़ा सोने, हीरे, मोती, आदि से भरी पढ़ी है। यह देख सेठ और सेठानी को विश्वास ही नहीं हुआ की तभी भगवान ने आकर सेठ को उसके महायज्ञ का आशीर्वाद दिया; यह महायज्ञ आग के आगे नहीं था, यह महायज्ञ, दूसरों की मदद करना था।