डाक्टर धर्मवीर भारती द्वारा रचित लघु उपन्यास ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ सात अध्याय में लिखी गयी है। इस लघु उपन्यास में नायक, माणिक मुल्ला तीन नायिकाओं की प्रेम कहानियों का वर्णन करता है। इन प्रेम कहानियों को मानिक मुल्ला ने छः दुपहरों में अपने मित्रों को सुनाया है।
पहली कहानी की शीर्षक ‘नामक की अदायगी’ है। माणिक मुल्ला के घर के पास एक कोठी थी जिसमें जमुना के नाम से एक लड़की रहती थी, जो स्वभाव में अत्यंत शरारती और हँसमुख थी। वह माणिक मुल्ला की दोस्त बचपन से ही रही है, और वह दोनों एक साथ बढ़े हुए हैं। माणिक जमुना को मस्ती में तंग करने के लिए उसको जमुनिया पुकारता था। जब-जब जमुना बड़ी होती गयी, उनका एक लड़के के साथ प्रेम का रिश्ता शुरू हो गया। जमुना के पड़ोस में ही महेसर दलाल रहते थे जिनके बेटे तन्ना से जमुना की अच्छी मित्रता थी। उनके विवाह की बात भी चली परंतु दोनों एक ही बिरादरी के होने के बावजूद विवाद-बंधन में न बँध सके क्योंकि तन्ना का गोत्र जमुना की अपेक्षा कुछ नीचे था। जमुना के पिता बैंक में साधारण क्लर्क थे, बेटी के दहेज के लिए पैसा खर्च करने की हैसियत नहीं थी इसलिए कहीं उसकी शादी तय नहीं कर सके। तन्ना के प्रति उसके मन में लगाव था और विवाह की बातचीत टूट जाने से जमुना का दिल भी टूट गया था। उसकी स्कूल की पढ़ाई छूट चुकी थी। गाय को रोटी खिलाने की ज़िम्मेदारी माणिक को मिला था, जिसके लिए उसे रोज़ जमुना के घर जाना पड़ता था। जमुना माणिक के लिए बेसन के नमकीन पुए लेकर आती और खिलाती, और रोज़ उन दोनों की बातचीत हुया करती।इन बातों में माणिक को जमुना की संघर्षों के बारे में सीखने का मौक़ा मिला। जमुना ने माणिक से वादा लिया की वह प्रति रात उससे मिले, क्योंकि यह नामक की अदायगी थी। इस कहानी का निष्कर्ष यह है कि भारत की हर घर में गाय होनी चाहिए, ताकि देश में दूध की नदी हो, और आर्थिक कठिनीयों देश से मिट जाय।
दूसरी दोपहर की कहानी भी जमुना से ही संबंधित है जिसका नाम है- ‘ घोड़े की नाल’ । इस कहानी में जमुना के विवाह और वैवाहिक जीवन के प्रसंग हैं। जब दहेज के अभाव में उच्च गोत्र के किसी युवक से जमुना का विवाह नहीं हो पाया तो उसकी माँ ने पूजा-पाठ का सहारा लिया और पिता दहेज जुटाने की चिंता में बैंक में अधिक घंटे काम करने लगे। दूर की एक रिश्तेदार रामो बीवी आई और जमुना से अपने भतीजे के विवाह का प्रस्ताव रखा जिसके दो पत्नियाँ पहले हीमर चुकी थीं। माता-पिता इस विवाह के लिए तैयार हो गये। विवाह के बाद जब जमुना मायके आई तो वह जेवरों से लदी थी। उसको पता चला कि पिताजी को जल्द ही पैसे चाहिए थे, नहीं तो बेंक उसे जेल भिजवा सकता था। जमुना ने बहाना किया और अगले ही दिन ससुराल वापिस चली गयी।भारती जी ने यहाँ दर्शाया है कि पैसें होने से इंसान और स्वार्थी बनता है। बीमारी के कारण जमुना के पति की मृत्य हुई। परंतु, माणिक को पता चला कि पति की सारी संपती जमुना ने अपने तंगेवाले, रामधान के नाम रखी, जिसके साथ उसकी चक्कर चल रही थी।
तीसरी कहानी तना की ज़िंदगी की उमस के बारे में है। इस कहानी को माणिक मुल्ला ने कोई शीर्षक नहीं दिया है। लेखक ने कहानी में गर्मी की दोपहर की उमस का वर्णन किया है जो तन्ना के जीवन में व्याप्त उमस की भूमिका है।यह कहानी युवा पीढ़ी की यौन उत्कंठा के बारे में है। जिस कहानी को लेखक ने पहली अध्याय में दर्शाया है, उस ही कहानी को लेखक ने तना की आँखों से दर्शाया है। तना की शादी लिली से हो जाती है, लेकिन वह इस बात को लेके उदास है।पिता ने उन्हें रेलवे में नौकरी दिला दी थी। घर की जिम्मेदारियाँ और खर्चों को पूरा करने में तन्ना सक्षम नहीं थे। लिली घर छोड़ कर चली गयी। इन सब परिस्थितियों से जझते तन्ना बीमार रहने लगा। इस बीमारी में डयूटी करते हए वह चलती रेलगाडी से गिर पडे। उनके दोनों पाँव कट गये थे।इस कहानी में भारती जी दर्शाते हैं कैसे भारतीय सामाज में उमस और यौन उत्कंठा से युवा पीढ़ी की सपने टूट जाते हैं।
चौथी दोपहर की कहानी ‘मालवा की युवरानी देवसेना’, लिली के बारे मैं है। इस कहानी में माणिक मुल्ला लिली से प्रेम करता है। परंतु, इस कहानी में लिली किसे और से शादी कर, और माणिक को छोड़ने की सोच से घबराती है। परंतु, मानिक लिली को समझता है कि शादी का प्यार उन दोनों के बीच प्यार जैसे ही शुध था। अंत में, माणिक की कायरता के कारण, लिली का शादी हो जाती है, और उनका प्रेम का रिश्ता टूट जाता है।
पाँचवी दोपहर की कहानी का शीर्षक है ‘काले बेंट का चाकू’। इसमें सत्ती नाम की लड़की की कहानी है।सती माणिक से प्यार करती है, और साबुन की धंदा चलाती है। वह अपनी सुरक्षा के लिए अपनी कमर पर एक काले बेंट का चाकू पहनती है। सत्ती चाहती है की माणिक को सर्व्श्रेस्थ शिक्षा मिले, ताकि वह अच्छे नौकरी में काम कर सकता है। सत्ती चमन ठाकुर के साथ रहती है, जिसको वह चाचा कहती है। परंतु, चमन ठाकुर सत्ती को महासर दलाल को बेच देता है। माणिक मुल्ला यह बात सुनके सत्ती को मिलता है। यहाँ, सत्ती की सहायता करने की जगह, वह उसको पकड़ लेता है, जब तक चमन ठाकुर और महासर दलाल आते हैं। बाद में, माणिक पता चलता है कि दोनो चमन ठाकुर और महेसर ने मिल कर सत्ती का गला घोंट दिया। इस कहानी का मानिक पर गहरी प्रभाव भारती जी छठी दोपहर में दर्शाते हैं।
सातवीं दोपहर में कोई नयी कहानी नहीं है बल्कि उस सभी कहानियों का निष्कर्ष है। भारती जी इस लघु उपन्यास में अपने वर्ग के युवा पीढ़ी के संघर्ष, कठिनाइयाँ, वर्ग विभाजन, और यौन उत्कंठा को दर्शाते हैं। परंतु, आने वाले पीढ़ी के लिए आशा इस अंधेरे को रोशन देती हैं। यह आशा ही सूरज का सातवाँ घोड़ा हैं।