सूरज का सातवाँ घोड़ा

सूरज का सातवाँ घोड़ा श्री धर्मवीर भर्ती द्वारा रचित एक लघु उपन्यास है। यह उपन्यास नवीन किस्सगोई शैली में लिखी गयी है। इस उपन्यास में लेखक भर्ती जी ने सात दोपहरों में कही गयी प्रेम कहानियों को एक दूरे में गुमफित किया है। इस उपन्यास की हर कहानी में एक शीर्षक और निष्कर्ष है। सूरज का सातवाँ घोड़ा के वक़्ता श्री माणिक मुल्ला हैं।

कहानी का पहला अध्याय है: नामक की अदायगी। इस कहानी में लेखक ने गोत्र विभाजन की समस्या को पाठकों तक पहुँचाया है। इसके साथ ही साथ उन्होंने भारत वर्ष में प्रचलित लैंगिक असमानता को भी पाठकों तक पहुँचाया है। यह कहानी जमुना, माणिक मुल्ला एवं तन्ना की है। इस कहानी में लेखक हमें बताते हैं की जमुना और तन्ना का विवाह गोत्र असमानता की वजह से नहीं हो पाता। अंत में निष्कर्ष यह निकलता है  की हर घर में गाय होनी चाहिए। शीर्षक यथोचित है।

इस उपन्यास का दूसरा अध्याय है : घोड़े की नाल। इस कहानी में लेखक ने लैंगिक असमानता को दर्शाया है। याहन हम देखते हैं की जमुना की शादी एक बूढ़े ज़मींदार से हो जाती है। इस कहानी का निष्कर्ष होता है की कोई भी श्रम बरान नहीं होता।

इस लघु उपन्यास के तीसरे अध्याय का कोई शीर्षक नहीं था। इस कहानी में लेखक ने भारत वर्ष में कई लोगों की ज़िंदगी में प्रचलित “उमस” के बारे में बताया है। लेखक ने इस अध्याय में तन्ना की ज़िंदगी की मुसीबतों के बारे में हमें बताया है और अंत में कैसे वह अपने पैर खो देता है, इसका भी चित्रण किया है। इस कहानी का कोई निष्कर्ष नहीं है क्योंकि निष्कर्ष सुनने से पहले ही वक़्ता वहाँ से चले जाते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *