मेने जूठन में सिखा की केसे भारत की जात प्रथाएँ अनए पूर्ण होती है। मेने देखा केसे नीची जाती वाले लोगों की तरफ़ अनए होता है। भारत में जाती प्रथा को अभ ‘इलीगल’ या अपराध माना जाता है, पर अभी भी कई घरों में और गाँवों में जाती प्रथा पर भाव डाला जाता है। जूठन लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि की आत्मा-कथा है। इसमें लेखक वाल्मीकि, अपने जाती प्रथा से जूधे अनुभव प्रस्तुत करते है। नीची जाती के होने के कारण लेखक को किस तरह से समझ ने
उनका नकारात्मक उपचार किया। यह आत्मकथा बहूट विचरोड़पादक और निराशमय है। वर्ग विभाजन को वेश्विक मढ़ा रखके लेखक ने- सभी के लिए बुनियादी स्वच्छता, अंधविश्वास की अवधारणाओं जेसे चीजें दिखाई है। एक सीन जो मुझे बहूट चूत है, जब लेखक को मास्टर जी ने बहूट पिता है। चाहे जो भी इंसान हो, मेरे विचार से किसी को पिधने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। एक और सीन जिसमें मेरे दिल छोटा हो गया, जब उसको सेम स्कूल में पानी भी अलग लाना पढ़ता था क्योंकि वह सेम पानी भी नहीं पी सकता क्योंकि वह ‘अछूत’ नीच जाट का था और अंधविश्वास यह था की उसको चुना भी ग़लत माना जाता था।