राष्ट्रीय भाषा के सम्मान पर निबंध

१ सप्ताह पहले मैंने अपनी राष्ट्रीय भाषा के सम्मान एवं उसकी व्यापकता बढ़ाने के सम्बंध में एक निबंध लिखा था ।

अगली बार मैं हिंदी की व्यापकता को बढ़ाने के लिए अन्य सुझाव भी दूँगी , जैसे – टीवी, अख़बार , आदि ।

महायज्ञ का पुरस्कार कहानी पर मेरे विचार-

महायज्ञ का पुरस्कार एक विनम्र और उदार सेठ की कहानी है जो की धर्मपरायण भी हैं । उनके भंडार का द्वार हमेशा सब के लिए खुला रहता और जो भी उनके आगे हाथ पसारता, वह पाता ।सेठ ने बहुत सारे यज्ञ किए थे और न जाने कितना धन ग़रीबों में बाँट दिया था । परंतु वक़्त गुज़रा एवं सेठ को ग़रीबी का मुँह देखना पड़ा। हालत तो ऐसी हो गयी की उन्हें भूखा रहना पड़ता था।एक दिन सेठानी के सुझाव पर वह अपने यज्ञ के फल को बेचने  कुंदनपुर, धन्नअ सेठ के घर रवाना हुए । रास्ते में पेड़ों का कुंज एवं कुआँ देखकर सेठ ने रुककर भोजन और विश्राम करने का विचार किया । वहाँ जाने पर उन्हें एक बहुत कमज़ोर कुत्ता दिखा । अपने दयालु स्वभाव के चलते, उन्होंने अपनी चारों रोटियाँ उस कुत्ते को खिला दीं । कुंदनपुर पहुँचने पर धन्नअ सेठ की पत्नी (जिन्हें तीनो लोक की बातें जानने की शक्ति प्राप्त थी ) ने उनसे कुत्ते को चारों रोटियाँ खिलाने के यज्ञ का फल माँगा । सेठ ने इस कार्य को मानवोचित समझा था इसीलिए इसे नहीं बेचा। घर जाने पर शाम को उन्हें अपने ही तहख़ाने में जवाहरत मिले।

कहानी की भाषा शैली सरल है। महावरों का काफ़ी प्रयोग है। मुझे इस कहानी को पड़कर ऐसा लगा की मुझे भी हर प्राणी की मदद करनी चाहिए । हालाँकि सेठ के कुत्ते को मदद करने का विचार मुझे अच्छा लगा परंतु उसके तहख़ाने से जवाहरातों का मिलना थोड़ा सच्चाई से दूर लगा ।यदि यह घटना इस कहानी में मोजूद न होती, तो मुझे यह कहानी बहुत अच्छी लगती ।