१५ मई १९२०
सोमवार
प्रिय डायरी,
आज मेरे लिए एक बहुत ही शोक का दिन है आज मेरे ही गर की चौखट पर मारे प्रिय देवदास की मृत्यु हो गई। दुःख की बात तो यह है की अगर इनका बस चलता तो शायद मज़े यह पता भी नहीं चलता की देवदास मरगया है। मैं तो यह सोचती रहती की मेरा देवदास न जाने कहाँ है ? लेकिन दुर्गा माँ की भी क्या माया है मेरा देवदास मेरे ही घर के सामने आकर मरा, और हालाँकि मैं उससे मिल नहीं पाई अब मुझे पता है की वह इस दुनिया को छोड़ आगे बढ़ चुका है।
अब की मैं यह सोचती हूँ तो यह लगता है की क्या बीती होगी देवदास पर इतनी भारी बारिश मैं न जाने कहाँ से आया था और किस हालत मैं यहाँ आया था, यह मज़े अब कभी नहीं पता चलेगा पर एक चीज़ जो मुझे पक्का पता है वह यह है की अपनी अंतिम साँस लेते वक़्त वह मेरे घर आया था इस्स उद्देश्य से की मैं मारने से फले उसकी सेवा कर सकूँ। वह मरती हालात मैं यहाँ मुझे दिया हुआ वचन निभाने आया था और मैं उसकी यह अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर सकी। मेरे दिल मैं यह सोचकर भी बहुत दुःख होता है की अगर हमें आज से पाँच साल पहले चीज़ें अलग ढंग से करी होती शायाद मैंने थोड़ा काम ग़रूर दिखाया होता या फिर मैंने नख़रे करने की जंग देव भैया की बात मानी होती तो ऐसा कभी नहीं होता, हम दोनो की शादी हो जाती और देव भैया कभी शराब का सेवन शुरू नहीं करते और न ही कभी उनको इतनी भयंकर मौत मरनी पड़ती।
अब की मैं भविष्य के बारे मैं सोचती हुँ तो यह समझ आता है कि देव भैया सही थे अब मेरे माथे पर जो एक निशान है यही हमारे प्यार और बचपन का प्रतीक है और मेरी बची- ज़िंदगी को जीने का अकेला सहारा, क्योंकि इसी बिन्दू को हर दिन देख कर मज़े अपने देव भैया की याद आएगी और इस बात की याद आएगी की किस प्रकार वह अपना वादा पूरा करने के लिए मरती हालत में यहाँ आए थे और पूरी रात यहाँ बेठे रहे। उनकी मौत के बारे मैं सोचती हुँ तो दिल दुखता है और इस बात का एहसास होता है कि अब देव भैया मेरी ज़िंदगी मे नहीं रहे।
तुम्हारी प्रिय,
पार्वती